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ग़ज़ल
आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है
या सारी उम्र की राहत है या सारी उम्र का रोना है
अफ़सर मेरठी
ग़ज़ल
जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं
उन के गुलशन में बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पाता हूँ मैं
अफ़सर मेरठी
ग़ज़ल
दिल के ज़ख़्मों से चमन में शोर बरपा कर दिया
मैं ने फूलों में हँसी का तेरी चर्चा कर दिया
अफ़सर मेरठी
ग़ज़ल
अक्स है बे-ताबियों का दिल की अरमानों में क्यूँ
बे-ज़बाँ शामिल हुए जाते हैं मेहमानों में क्यूँ